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प्रेम एक परम्परा या आज का फैशन

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प्रेम एक परम्परा या आज का फैशन 
नमस्ते दोस्तों  मेरा नाम है  साहित्य गौड़  प्रेम एक परम्परा  या आज का फैशन शीर्षक आज कल के नौजबान युवा के प्रेम को बताता हैं की आज कल के युवाओ  का प्रेम  है या सिर्फ एक फैशन इसे आप एक दिखावा भी कहा सकते हो |
 प्रेम  आज कल के युवाओ को बहुत ही लुभाता  है फिर चाहें बो फिल्मो  में हो या असली जिंदगी में प्रेम सभी तरहा से लुभाता आ रहा हैं | प्रेम आज से ही नहीं बल्कि तब सा ह जब से जीव जन्तुओं की रचना हुई  हैं तब से ही प्रेम पनप रहा हैं | फिर चाहे लैला मजनू की बात करे या आज का ज़माने की सब से सुन्दर जोड़े रणवीर दीपिका की | 

मगर आज कल प्रेम युवाओ में सिर्फ एक फैशन या दोस्तों के बीच  दिखने का जरिया बन गया हैं | जहाँ उस ज़माने मै प्रेम का जरिया पत्र  थे बही आज का ज़माने में प्रेम का जरिया सोशल मीडिया( social media) ने ले ली हैं जहाँ फेसबुक,व्हाट्सप्प और भी डेटिंग साइड (sites) ने ले ली हैं | यहाँ युवा पुरा  पुरा  दिन बातो में बीता देते है बही बहुत से युवा डेटिंग करने के नए नए तरीके खोजते रहते हैं प्रेम ही सब कुछ है इस आशा में जीने लगता हैं बहुत से युवाओ में प्रेम मानो एक फैशन बन गया हैं अपने दोस्तों में कूल लगे इस का लिया जिस से प्रेम नहीं होता उस सा भी प्रेम करते हैं और फिर न समझ आने पर किसे और से | आज कल की मोवियो (movie) में देख देख कर  युवाओ में एक होड़ सी मच गयी ह प्रेम को ले कर बो भी अपने दोस्तों के सामने कूल दिखने के लिया किसी भी हद तक चले जाते हैं | 



प्रेम आज के युवा युवतियो में बहुत महत्वपूर्ण  विषय बन  हैं  मगर आज इस मॉर्डन (Modern) दुनियां मै  भी   युवाओ के बीच में भी कही न कही असली प्रेम भी  जिन्दा हैं  चाहे बो एक तरफ़ा हो या दोनों तरफ से | 
आज भी लैला मजनू बाला पहले के ज़माने का प्रेम देखने को मिल जाता ह बस तरीके काफी हद तक मॉर्डन हो गए ह पहले पत्रो के रूप म प्रेम होता था और आज कल सोशल मीडिया के जरिया चैट पर आज के इस मॉर्डन युग मै प्रेम की परम्परा को जीवित रखे हुए हैं और मेरा माना तो ये हैं की आगे भी सदियों तक जब तक जीव जन्तु और मानव जाती है तब तक इस प्रेम की परंपरा को जीवित रखा जायेगा | बदला है तो सिर्फ प्रेम करने का तरीका | आगे आने बाली पीढ़ी में और भी मॉर्डन हो जायेगा मगर ये परम्परा जारी रहेगी | 
तय आप को करना हैं  ये प्रेम एक फैशन है या परम्परा |


धन्यवाद writer by SAHITYA GAUR

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